कांग्रेस में निष्क्रिय नेताओं की संख्या बहुत बड़ी
कांग्रेस को कसक है कि उसके पूर्व अध्यक्षों महात्मा गांधी और सरदार पटेल का राजनीतिक फायदा भाजपा उठा रही है। गुजरात के अहमदाबाद अधिवेशन के जरिए पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश भी दिया कि आगे कांग्रेस के इन दोनों नेताओं का फायदा राजनीतिक प्रतिद्विंद्वियों को नहीं उठाने देना है।
अहमदाबाद अधिवेशन का एक मकसद 2027 के गुजरात चुनाव के लिए कांग्रेस को तैयार करना भी था। यही वजह है कि अधिवेशन में गुजरात पर अलग से प्रस्ताव भी लाया गया। प्रस्ताव में गुजरातियों को कुपोषण, नशा, बेरोजगारी से मुक्ति के सपने दिखाए गए हैं। जातिगत जनगणना और पचास प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने का भी वादा किया गया है। किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी का वादा है। अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकाजरुन खरगे ने स्पष्ट कर दिया कि निष्क्रिय और काम नहीं करने वाले नेताओं को रिटायर किया जाएगा। यह राहुल गांधी की ही लाइन है। पहली गाज जिला अध्यक्षों पर गिरेगी। इसकी शुरुआत गुजरात से की जा रही है। गुजरात में इस काम के लिए 42 केंद्रीय पर्यवेक्षक और 182 प्रदेश पर्यवेक्षक बनाए गए हैं। राहुल गांधी ने रह कर नये जिला अध्यक्ष बनाने की पूरी प्रक्रिया खुद समझाई।
पार्टी ने महसूस किया है कि जिला और बूथ स्तर पर कमजोरियों की वजह से ही वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को शिकस्त नहीं दे पाती है। अहमदाबाद अधिवेशन का बड़ा मकसद पार्टी को जिला और बूथ स्तर पर मजबूत बनाना ही है। राहुल के शब्दों में पार्टी की नींव मजबूत किए जाने की जरूरत है यानी वह भी मान रहे हैं कि पार्टी की नींव हिल गई है। दरअसल, 300 से ज्यादा जिला अध्यक्षों के साथ कांग्रेस अध्यक्ष खरगे और राहुल गांधी ने अधिवेशन से पहले चर्चा की थी। उन्हें बताया गया था कि उम्मीदवारों के चयन में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहेगी लेकिन खराब प्रदर्शन पर उन्हें हटाया भी जाएगा।
संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल खुद कहते हैं कि जिला अध्यक्षों के साथ ऐसी बैठक 20 साल बाद हुई है। अहमदाबाद अधिवेशन इस बात के लिए भी याद रखा जाएगा कि यह काफी व्यवस्थित था। इसमें शामिल होने के लिए पहुंचे नेताओं को आयोजन स्थल पर प्रवेश से लगा कर भोजन और ठहरने में किसी तरह की दिक्कत नहीं हुई। ऐसी दिक्कतें कांग्रेस के आयोजनों में आम बात होती है क्योंकि वहां प्राय: जवाबदेही का अभाव रहता है। कांग्रेस के दिल्ली, उदयपुर और रायपुर के आयोजन शिकायतों से भरे रहे थे और ये शिकायतें कांग्रेस अध्यक्ष के पास तक भी पहुंची थीं। यहां तक कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में कन्याकुमारी और श्रीनगर में भी इंतजामों की कमी थी।
अहमदाबाद अधिवेशन में दूसरे राज्यों से पहुंचे नेता यह देखकर चकित थे कि भाजपाशासित राज्य में पुलिस का रवैया बेहद सहयोगात्मक था। कार्यसमिति बैठक स्थल सरदार पटेल स्मारक, प्रार्थना सभा स्थल साबरमती आश्रम और अधिवेशन स्थल साबरमती रिबरफ्रंट या विमानतल-रेलवे स्टेशन पर किसी कांग्रेस नेता या पत्रकार को पुलिस ने रोका हो ऐसी घटना सामने नहीं आई। अहमदाबाद में कांग्रेस नेता खरगे-राहुल के सड़क किनारे बड़ी संख्या में होर्डिग्स लगे देख कर भी बाहर से आए नेताओं को आश्चर्य हुआ कि भाजपा की नगर निगम ने इन्हें आयोजन संपन्न होने तक नहीं हटाया!
दक्षिण की राजनीति को प्रभावित कर रहे परिसीमन का कांग्रेस के प्रस्ताव में जिक्र नहीं होना वहां के नेताओं को अच्छा नहीं लगा। पचास करोड़ श्रमिकों को प्रभावित करने वाले लेबर कोड को भी प्रस्ताव में जगह नहीं देने से श्रमिक वर्ग में अच्छा संदेश नहीं गया है। प्रस्ताव में एमएसपी की कानूनी गारंटी और किसान आंदोलन को दबाए जाने का जिक्र है लेकिन किसानों को खदड़ने वाली पंजाब की आप सरकार की आलोचना नहीं करने से इस चर्चा को बल मिला है कि गुजरात में केजरीवाल से फिर हाथ मिलाया जा सकता है। पंजाब की आप सरकार ने एक साल पुराने किसान आंदोलन को बलपूर्वक कुचल दिया था और किसानों को जेल में डाल दिया था। अधिवेशन में इस पर गंभीरता से चर्चा नहीं हुई, प्रस्ताव में भी सिर्फ जिक्र भर है।
अधिवेशन में नेता और कार्यकर्ता के बीच पैदा हो गई दूरी को कम करने पर भी विचार नहीं किया गया। पार्टी सरकार में नहीं है फिर भी पदाधिकारी और नेताओं का मिलना तो दूर उनके दर्शन तक दुर्लभ हैं। कांग्रेस के नेता ही नहीं प्रवक्ता भी अहंकारी हो गए हैं, यह बात हाई कमान को दिखाई नहीं देती। कांग्रेस अध्यक्ष खरगे हों या राहुल उनके यहां से अब कार्यकर्ताओं को पत्रों के जवाब नहीं मिलते। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में अनुसूचित जाति के कार्यकारी अध्यक्ष ने भूमाफिया के दबाव में पिछले साल आत्महत्या कर ली थी, जब आत्महत्या पूर्व लिखे गए पत्र के आधार पर एफआईआर नहीं हुई तो उनकी बेटी ने मदद के लिए खरगे, राहुल, प्रियंका को पत्र लिखे। इस मामले में उसे डेढ़ महीने बाद भी किसी का जवाब नहीं मिला। इस पत्र में उसने यह भी लिख दिया था कि जब कांग्रेस अनुसूचित जाति के अपने कार्यकर्ता के परिवार को न्याय नहीं दिलाती है तो जय बापू-जय भीम-जय संविधान का नारा कैसे लगाती है! कांग्रेस के सबसे पुराने संगठन सेवादल में असंतोष का विषय भी है, इसे भी हाई कमान नजरंदाज किए हुए है। सेवादल के प्रमुख गुजरात से ही आते हैं,अच्छा होता कि खरगे-राहुल अधिवेशन के दौरान ही इस असंतोष को दूर कर देते।
कांग्रेस में कहा जा रहा है कि जब प्रदर्शन और जवाबदेही के आधार पर जिला और ब्लॉक अध्यक्ष बनाए जाएंगे तो पार्टी पर क्षत्रपों का दखल कम होगा। राहुल क्षत्रपों की गुटबाजी को इसी फामरूले से खत्म करना चाहते हैं। हालांकि इस फार्मले पर अमल कैसे होगा, इसको लेकर पार्टी के भीतर काफी सवाल हैं। ऐसे जिला अध्यक्ष जिनका कोई कारोबार नहीं है, वे पार्टी के रोजमर्रा के खर्च कैसे चलाएंगे? राहुल फामरूले में यह भी है कि निचले स्तर पर नेतृत्व संभालने वाले नेताओं को पार्टी के रोजमर्रा के खर्च और कार्यक्रमों के लिए खुद ही धन जुटाना है। सवाल यह भी है कि पार्टी में निष्क्रिय नेताओं की संख्या बहुत बड़ी है, उन्हें घर बैठाना क्या वास्तविक रूप से संभव होगा?