देवस्थानम के बहाने कैबिनेट मंत्री हरक सिंह ने लिया पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह को आड़े हाथ

देहरादून।

एक तरफ सरकार देवस्थानम बोर्ड को भंग करने के फैसले को सराहना हो रही है तो दूसरी तरफ पार्टी के ही वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस मामले से बच रहे हैं। देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को लेकर बीजेपी में ही अलग-अलग मत सामने आ रहे हैं। अब कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने देवस्थानम के बहाने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को आड़े हाथ लिया है। हरक सिंह रावत ने कहा कि उस समय भी हम देवस्थानम बोर्ड के पक्ष में नहीं थे और अब जब यह निर्णय लिया गया है तो वह जन भावनाओं को देखते हुए फैसला किया गया है। हरक सिंह रावत ने यह जाहिर किया कि त्रिवेंद्र सरकार में जो फैसला लिया गया था, वो कैबिनेट मंत्रियों की इच्छा के अनुसार नहीं लिया गया था।
उन्होंने कहा कि सरकार को लचीला होना चाहिए और अड़ियल रुख नहीं रखना चाहिए। अब जो फैसला हुआ है, वो तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूकधारियों की मांगों को देखते हुए लिया गया है। इतना ही नहीं जब हरक सिंह रावत से त्रिवेंद्र सिंह के बयान को लेकर सवाल पूछा तो हरक सिंह रावत बोले ‘त्रिवेंद्र सिंह रावत अब ना मुख्यमंत्री हैं और कैबिनेट मंत्री भी नहीं हैं, वे एक सामान्य विधायक हैं और उनके बयानों के कुछ खास मायने नहीं है’।
बता दें कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज यानी 30 नवंबर को उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का ऐलान किया है। इससे पहले चारों धामों के तीर्थ पुरोहित बीते लंबे समय से देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की मांग कर रहे थे। इतना ही नहीं इस दौरान पुरोहितों ने चारों धामों में रैली भी निकाली। यहां तक की पीएम मोदी को खून से पत्र भी लिखा। हालांकि, देवस्थानम बोर्ड को लेकर सरकार और तीर्थ पुरोहितों के बीच वार्ता भी हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। वहीं, सरकार ने तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूकधारियों के विरोध प्रदर्शन और सरकार को खामियाजा भुगतने की चेतावनी के बाद कमेटी का गठन किया। इस कमेटी ने 3 महीने तक काम किया और तमाम विषयों पर अध्ययन करने के बाद अंतिम रिपोर्ट सौंपी। आखिरकार धामी सरकार को तीर्थ पुरोहितों के आगे झुकना पड़ा और देवस्थानम बोर्ड को भंग करना पड़ा। वहीं, साल 2022 में आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सीएम पुष्कर सिंह धामी के इस फैसले को काफी अहम माना जा रहा है।

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