राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020: शिक्षा के नए युग की शुरुआत
धर्मेंद्र प्रधान
मैंने इस वर्ष 8 जुलाई को शिक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभाला था। यह चुनौतीपूर्ण और रोमांचक है और ऐसा न केवल इस मंत्रालय के शानदार इतिहास को देखते हुए है, बल्कि यहां चल रहे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 के कार्यान्वयन के कारण हैं, जो 34 वर्ष के बाद लाई गई है और यह 21वीं सदी की पहली शिक्षा नीति है।
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि एनईपी 2020 एक ऐसा दस्तावेज है, जिसका देश के शैक्षणिक परिदृश्य पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। इसके परिणामस्वरूप आंतरिक बदलाव होगा और संसाधनों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे भारत के भविष्य को नई दिशा मिलेगी और दुनिया में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। मैं पूरी जिम्मेदारी से यह बात कह रहा हूं। अगर आप चाहें, तो कह सकते हैं कि गुणवत्ता, समानता, पहुंच और सामर्थ्य के सिद्धांतों पर तैयार की गई यह नीति मोदी सरकार के लिए एक मार्गदर्शक फ़लसफ़ा है, एक मूल पाठ है, जो करोड़ों युवाओं की आशाओं और आकांक्षाओं को साकार करने का एक साधन है।
मेरा यह तर्क एनईपी 2020 की निम्नलिखित विशेषताओं पर आधारित है, हालांकि भविष्य में इस नीति के कई अन्य लाभ भी हैं।
पहली विशेषता यह है कि इस नीतिगत उपाय के माध्यम से समावेशी शिक्षा पर विशेष जोर देकर हम प्री स्कूल से लेकर वयस्कता तक एक बच्चे के लिए अधिक सक्षम वातावरण सुनिश्चित करते हैं। एनईपी में सीखने को रोचक बनाकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से जोड़ा गया है और नई 5+3+3+4 स्कूली शिक्षा प्रणाली के जरिए एक बच्चे को औपचारिक स्कूलों के लिए तैयार किया जाता है। अब तक प्ले स्कूल का विचार मुख्य रूप से शहरों के मध्यम या उच्च वर्ग तक ही सीमित था, क्योंकि वे निजी स्कूलों का खर्च वहन कर सकते थे।
दूसरी विशेषता पहली से ही जुड़ी हुई है कि कौशल और स्कूली शिक्षा (अकादमिक), पाठ्यक्रम संबंधी और पाठ्यक्रम के अलावा मानविकी और विज्ञान के बीच के वर्गीकरण को तोड़कर बहु-विषयकता, वैचारिक समझ और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा दिया गया है। इसमें रचनात्मक संयोजन करने की पूरी संभावना है उदाहरण के लिए पेंटिंग के साथ गणित विषय का संयोजन। एक छात्र के जीवन में आने वाले कई प्रकार के तनाव से निपटने के लिए शैक्षणिक सत्र की समाप्ति पर मार्कशीट के बजाय एक समग्र प्रोग्रेस कार्ड दिया जाएगा, जिसमें योग्यता के साथ बच्चे के कौशल, दक्षता, पात्रता और अन्य प्रतिभाओं का आकलन किया जाएगा।
हाई स्कूल के प्रत्येक बच्चे को व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करनी होगी, जो छठी कक्षा से शुरू होगी और इसमें इंटर्नशिप शामिल होगी। स्नातक और स्नातकोत्तर छात्र के लिए कभी भी पाठ्यक्रम को छोडऩे के लिए उपयुक्त प्रमाणन के साथ पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने और छोडऩे के कई विकल्प होंगे।
स्कूली शिक्षा के लिए एक डिजिटल बुनियादी ढांचा तैयार किया गया है, जो स्वतंत्र रूप से काम करेगा लेकिन यह सिद्धांतों, मानकों और दिशानिर्देशों की व्यवस्था एनडीईएआर के माध्यम से आपस में जुड़ा होगा। इससे संपूर्ण डिजिटल शिक्षा इकोसिस्टम सक्रिय होगा और यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा परिकल्पना किए गए इस क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण सुधारों के लिए आवश्यक है।
एनडीईएआर समग्र शिक्षा स्कीम 2.0 में भी सहायता करेगी, जिसे अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया है और इसके लिए इस माह की शुरुआत में 2.94 लाख करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय की घोषणा की गई थी। यह एक व्यापक कार्यक्रम है, जो सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों के प्री-स्कूल से लेकर 12 वीं कक्षा तक के 11.6 लाख स्कूलों, 15.6 करोड़ से अधिक छात्रों और 57 लाख शिक्षकों के लिए है। सभी बाल-केंद्रित वित्तीय सहायता डीबीटी तरीके से सीधे छात्रों को प्रदान की जाएगी।
उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिए एक एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट (एबीसी) होगा, जो विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों (एचईआई) से अर्जित सभी शैक्षणिक क्रेडिट के डिजिटल स्टोरेज की सुविधा प्रदान करेगा, ताकि इन्हें अंतिम डिग्री में शामिल किया जा सके। इसमें व्यावसायिक और शैक्षणिक प्रशिक्षण, अगर छात्र अलग-अलग समय पर पाठ्यक्रम को छोड़ता है और ऐसी अन्य असाधारण स्थितियों में उसके द्वारा जमा किए गए ग्रेड शामिल हैं। विशेष रूप से यह छात्रों के किसी भागीदार विदेशी संस्थान में एक सेमेस्टर पूरा करने के लिए एनईपी के तहत परिकल्पित विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ जुडऩे की व्यवस्था में सहायक होगा।
विधिक और चिकित्सा संस्थानों को छोड़कर पूरे देश में उच्च शिक्षा संस्थानों का एक ही नियामक होगा जिसे भारतीय उच्च शिक्षा परिषद (एचईसीआई) कहा जाता है। यह हल्का लेकिन सख्त नियामक ढांचा सुनिश्चित करेगा।
एनईपी बधिर छात्रों के लिए राष्ट्रीय और राज्य पाठ्यक्रम की सामग्री को भारतीय सांकेतिक भाषा (आईएसएल) में तैयार करने के मानकीकरण सहित शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा/स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा के लिए तीन भाषा नीति की भाषाई दक्षता के माध्यम से ज्ञान अर्थव्यवस्था तैयार करती है। यूनेस्को ने आईएसएल-आधारित सामग्री पर विशेष ध्यान देते हुए प्रौद्योगिकी-सक्षम समावेशी शिक्षण सामग्री के माध्यम से विकलांग व्यक्तियों की शिक्षा को सक्षम बनाने के लिए किंग सेजोंग साक्षरता पुरस्कार 2021 से सम्मानित किया है।
इन सभी पहलों को एक साथ जोडऩे के लिए लैंगिक समावेशन कोष की स्थापना, वंचित क्षेत्रों और समूहों के लिए विशेष शिक्षा जोन के लिए सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों पर विशेष जोर दिया जाएगा और राज्यों को बाल भवन या दिन के लिए बोर्डिंग स्कूल स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि एनईपी 2020 अनुत्पादक साइलो को तोड़कर बच्चे की उच्चतम क्षमता को बढ़ाएगी। यह नीति विश्व स्तर की शिक्षा प्रणालियों के इतिहास में सबसे अधिक परामर्श प्रक्रियाओं के बाद लाई गई है और भारत को ज्ञान अर्थव्यवस्था के शीर्ष पर पहुंचाने में हमारे नेतृत्व के संकल्प और दृष्टिकोण को दर्शाती है। जैसा कि हम अमृत महोत्सव या भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष मना रहे हैं, वैसे ही यह नई नीति आज के 5 से 15 वर्ष तक की आयु के उन बच्चों को तैयार करेगी, जो भारत की स्वतंत्रता के 100 वर्ष या आज़ादी के 100 साल के अवसर पर 30 से 40 वर्ष आयु के होंगे। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा कार्यबल तैयार करने की इस प्रक्रिया में शामिल होने का एक अवसर दिया गया है, जो वैज्ञानिक विचार, आलोचनात्मक सोच और मानवतावाद पर आधारित एक वैश्विक समुदाय का प्रणेता होगा।